बहमनी साम्राज्य | Bahmani Kingdom in Hindi

बहमनी साम्राज्य मध्यकालीन भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। इसकी स्थापना 1347 में अला-उद-दीन बहमन शाह द्वारा की गई थी और 1527 तक चली थी

 

बहमनी साम्राज्य(Bahmani Kingdom) (1347-1358)

बहमनी साम्राज्य 14वीं और 15वीं शताब्दी के दौरान भारत के दक्कन क्षेत्र में एक शक्तिशाली राज्य था। इसकी स्थापना सुल्तान अला-उद-दीन बहमन शाह ने की थी और यह 16वीं शताब्दी के अंत तक चला था। यह ब्लॉग पोस्ट इस शक्तिशाली साम्राज्य के इतिहास, संस्कृति और विरासत के साथ-साथ भारत की वर्तमान संस्कृति पर इसके प्रभाव का पता लगाएगी। हम यह भी देखेंगे कि आधुनिक इतिहासकार इस साम्राज्य और भारतीय इतिहास में इसके स्थान को कैसे देखते हैं। अंत में, हम इस साम्राज्य के बारे में कुछ रोचक तथ्यों पर चर्चा करेंगे जो व्यापक रूप से ज्ञात नहीं हैं।

बहमनी साम्राज्य

बहमनी साम्राज्य मध्यकालीन भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। इसकी स्थापना 1347 में अला-उद-दीन बहमन शाह द्वारा की गई थी और 1527 तक चली थी। यह साम्राज्य अपनी मजबूत सैन्य, आर्थिक स्थिरता और सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए जाना जाता था। बहमनी साम्राज्य अन्वेषण करने और इसके बारे में अधिक जानने के लिए एक दिलचस्प विषय है। इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से, हम साम्राज्य के इतिहास, उसके शासकों, उसकी उपलब्धियों और उनके सैन्य प्रशासन और पतन के बारे  में नज़र डालेंगे।

बहमनी साम्राज्य के शासक(Rulers of Bahmani Kingdom)

  • अलाउद्दीन हसन बहमनशाह (1347-58)
  • मुहम्मदशाह (1358-75)
  • मुजाहिद शाह (1375 - 78 )
  • मुहम्मदशाह द्वितीय (1378-97)
  • ताजुद्दीन फिरोजशाह (1397 - 1422 )
  • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ( 1422 - 36 )
  • अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436 - 58 )
  • हुमायूं (1458-61)
  • निजामशाह (1461–63)
  • शम्शुद्दीन अहमद तृतीय (1463 - 82 )
  • कलीमुल्लाह (1526 तक)

बहमनी साम्राज्य का सामान्य परिचय(General Introduction of Bahmani Kingdom)

  • इनकी राजधानी गुलबर्गा (कर्नाटक) थी।
  • इनकी द्वितीय राजधानी बीदर थी।
  • इनकी राजभाषा मराठी थी।
  • यह मध्यकाल का एक मुस्लिम साम्राज्य था।
  • बहमनी व विजयनगर साम्राज्य का सदैव युद्ध चलता रहा।
  • बहमनी साम्राज्य की मुद्रा हूण थी।

बहमनी साम्राज्य का संस्थापक (Founder of Bahmani Kingdom)

अलाउद्दीन हसन बहमनशाह (1347-58 ई)

  • बहमनी राज्य की स्थापना 1347 ई में तुर्की गवर्नर अलाउद्दीन बहमनशाह या हसन गंगू ने की।
  • अलाउद्दीन का पूर्व नाम जफर खां था।
  • इसने अपने साम्राज्य को चार प्रांतों गुलबर्गा, बीदर, दौलताबाद, बरार में बांटा।
  • बहमनशाह ने अपनी राजधानी गुलबर्गा बनाई व गुलबर्गा का नाम अहसानाबाद रखा।
  • इसने हिंदुओं से जजिया कर न लेने का फैसला किया था।

मुहम्मदशाह प्रथम(1358-75 ई)

  • अलाउद्दीन बहमनशाह के बाद उसका पुत्र मुहम्मदशाह प्रथम सुल्तान बना।
  • इसके काल में ही सबसे पहले बुक्का के विरूद्ध बारूद का प्रयोग हुआ।

मुजाहिद शाह (1375 - 78 ई)

  • भीमा नदी के तट पर फिरोजाबाद की स्थापना ताजुद्दीन फिरोज ने की थी।
  • फिरोज खगोलिकी को प्रोत्साहन देता था व उसने दौलताबाद के समीप एक वेधशाला बनाई।
  • रूसी यात्री निकितन 1417 इ में ताजुद्दीन फिरोज के समय भारत आया।

मुजाहिद द्वितीय (1378-97 ई.)

  • मुजाहिद द्वितीय को मुहम्मदशाह द्वितीय भी कहा जाता है।
  • वह बहमनशाह का पौत्र था बहमनी राज्य के सिंहासन पर उस जैसा शान्तिप्रिय और विद्वानुरागी सुल्तान कभी नहीं बैठा। उसने अपने राज्य में भव्य मस्जिदों का निर्माण करवाया था।
  • इसने जनकल्याण के लिए बहुत से काम किये उसने विजयनगर राज्य के साथ भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखे। 1397 ई में उसकी मृत्यु हो गई।

ताजुद्दीन फीरोजशाह (1397-1422 ई.)

  • मुजाहिद द्वितीय के बाद गयासुद्दीन और शम्सुद्दीन क्रमश सुल्तान बने परन्तु दोनों को ही अयोग्यता के कारण जल्दी से अपदस्थ कर दिया गया था।
  • बहमनशाह के एक पौत्र ताजुद्दीन फीरोजशाह ने सिंहासन पर अधिकार करलिया।
  • वह एक पराक्रमी सैनिक और कुशल सेनानायक था।
  • उसे कला साहित्य एवं विद्या में अनुराग था परन्तु वह अत्यधिक भोग-विलासी एवं कट्टर धर्मान्ध शासक भी था।
  • उसने विस्तारवादी नीति को अपनाते हुए विजयनगर पर तीन बार आक्रमण किये।
  • प्रथम दोनों आक्रमणों में उसे सफलता मिली और विजयनगर के शासकों को अपमानजनक सन्धियां करनी पड़ी। परन्तु तीसरी बार उसे देवराय द्वितीय के हाथों बुरी तरह से पराजित होना पड़ा। विजयनगर की सेना ने बहमनी राज्य को बुरी तरह से रौंद डाला था
  • इस पराजय के बाद वह शासन कार्यों की उपेक्षा करने लगा।
  • उसके बाद इसके भाई अहमदशाह ने उसे अपदस्थ करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया।

अहमदशाह (1422-35 ई.)

  • सुल्तान बनते ही अहमदशाह ने गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को अपनी राजधानी बनाया क्योंकि एक तो उसकी किलेबन्दी बहुत मजबूत थी।
    बीदर का किला

  • बीदर विजयनगर की सीमा से बहुत अधिक दूरी पर होने की वजह से विजयनगर के आक्रमण से सुरक्षित था।
  • अहमदशाह भी एक पराक्रमी शासक था। उसने विजयनगर वारंगल और मालवा के सुल्तानों से युद्ध लड़े।
  • इसके द्वारा गुजरात पर भी आक्रमण किया था परन्तु असफल रहा।
  • वह बहुत ही  क्रूर तथा अत्याचारी शासक था। 
  • 1435 ई. में अहमदशाह की मृत्यु हो गई।

अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57 ई.)

  • अहमदशाह के बाद उसका बड़ा लड़का अलाउद्दीन द्वितीय सुल्तान बना। सुल्तान बनते ही उसे अपने भाई मुहम विद्रोह का सामना करना पड़ा।
  • उसने भाई के विद्रोह को कुचलने के बाद भी उसके साथ अच्छा व्यवहार किया था

शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ( 1422 - 36ई)

  • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर (कर्नाटक) में स्थापित की। और बीदर नया नाम मुहम्मदाबाद रखा।

हुमायूं (1458-61ई)

  • हुमायूं को उसकी क्रूरता के कारण जालिम कहा जाता था।
  • दक्कन का लोमड़ी बरीद उल मुमालिक को कहा जाता था।
  • बीजापुर के गोल गुम्बज का निर्माण मुहम्मद आदिलशाह ने कराया। यह विश्व का सबसे बड़ा गुम्बज है।
  • चांदबीबी का विवाह अली आदिलशाह से हुआ था ।
  • बहमनी साम्राज्य की मुद्रा हूण थी ।

महमूद गवाँ(Mahmud Gaon)

  • महमूद गवाँ जन्म से ईरानी था। उसके पूर्वज शाह गिलन के वजीर थे। वह 45 वर्ष की आयु में व्यापार के उद्देश्य से गुलबर्गा आया था। किसी ने सुल्तान से उसका परिचय कराया और शीघ्र ही वह उसका प्रिय पात्र बन गया। सुल्तान अलाउद्दीन अहमदशाह द्वितीय उसकी योग्यता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपने दरबारी अमीरों में शामिल कर लिया।
  • सुल्तान हुमायूँ ने महमूद गवाँ को 'मलिक उल तुज्जार' (व्यापारियों का प्रधान) की उपाधि प्रदान की और अपनी मृत्यु के पूर्व उसे अपने नाबालिग पुत्र के संरक्षक परिषद् का सदस्य नियुक्त कर दिया था। राजमाता मकदूमेजहाँ उसकी निष्ठा और योग्यता पर पूरा भरोसा करती थीं। निजामशाह के समय में महमूद गवाँ के प्रभाव और लोकप्रियता में वृद्धि हुई। मुहम्मदशाह तृतीय के काल में राजमाता ने उसे सल्तनत का वजीर (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया और नये सुल्तान ने भी उसे 'ख्वाजाजहाँ' की उपाधि प्रदान की।
  • महमूद गवाँ ने बहमनी राज्य के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास में बहुमूल्य योगदान दिया। वह आजीवन पूरी निष्ठा और लगन के साथ बहमनी साम्राज्य की सेवा में लगा रहा। दरअसल प्रशासनिक परिषद् के सदस्य और प्रधानमंत्री के रूप में महमूद गवाँ बहमनी साम्राज्य की राजनीतिक समस्याओं से भलीभाँति परिचित हो चुका था।
  • उसका सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसने बहमनी साम्राज्य की राजनीतिक समस्याओं का समाधान कर उसे उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया।
  • महमूद गवाँ ने बहमनी साम्राज्य का विस्तार कोरोमंडल से अरब महासागर के तट तक किया, जिससे उसके राज्य की सीमा उत्तर में उड़ीसा की सीमा एवं काँची तक विस्तृत हो गई।
  • उसने सबसे पहले मालवा के विरुद्ध अभियान किया और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित करके बरार को उससे कटनीति तथा युद्धनीति का ऐसा सफल संमिश्रण किया जिससे मालवा के साथ स्थायी शांति स्थापित हो गई। इसके बाद उस पर अधिकार कर लिया।

बहमनी साम्राज्य का प्रशासन(Administration of the Bahmani Empire)

  • मुहम्मद प्रथम के मंत्री सैफुद्दीन गौरी ने केंद्रीय शासन का कार्य कई विभागों में व्यक्त किया
  • और उसने आठ मंत्रियों को नियुक्त किया, जो इस प्रकार थे -
  • (1) वकील-ए- सल्तनत: दिल्ली के मलिक नायब के समान
  • (2) अमीर-ए- जुमला अर्थ विभाग का अध्यक्ष (वित्त विभाग)
  • (3) वजीर-ए-अशरफ विदेश नीति एवं दरबार संबंधी कार्यों का निष्पादन करता था।
  • (4) कोतवाल: नगर का मुख्य पुलिस अधिकारी था।
  • (5) पेशवा वकील-ए- सल्तनत का सहायक था।
  • (6) सद्रे-ए-जहाँ न्याय विभाग, धर्म तथा दान विभाग का अध्यक्ष
  • (7) नाजीर: वह अर्थ विभाग से संबंधित था।
  • (8) वकील- ए- कुल: सभी मंत्रियों के कार्यों का निरीक्षण (प्रधानमंत्री )
  • बहमनी राज्य में कुल 18 शासक हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर 175 वर्ष शासन किया था।
  • सुल्तान के महल तथा दरबार की सुरक्षा के लिए विशेष अंगरक्षक सैनिक दल था, जिसे साख-ए-खेल कहा जाता था। यह चार भागों या नौबत में विभाजित थे, जिसके मुख्य अधिकारी सर-ए-नौबत होता था।
  • बीजापुर के शासक इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय को अबला बाबा एवं जगतगुरु की उपाधि दी गई थी।
  • इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय ने हिंदी कविता की "किताब-ए-नौरस" लिखी थी।
  • बीजापुर के गोल गुम्बज मस्जिद का निर्माण मुहम्मद आदिलशाह ने करवाया। यह विश्व का सबसे बड़ा गुंबद है।
  • अहमदनगर के निजामशाही वंश की स्थापना मलिक अहमद ने की।
  • दक्कन का लोमड़ी बरीद-उल- मुमालिक को कहा जाता था।

बहमनी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था (Economy of Bahmani Kingdom)

  • बहमनी साम्राज्य (1347-1527 ई.) भारतीय इतिहास में मशहूर राज्यों में से एक था, जो उत्तर भारत में स्थित था। इसकी अर्थव्यवस्था को कृषि, व्यापार और सांस्कृतिक विकास के माध्यम से विशेष महत्व दिया जाता था। यह साम्राज्य अवसरवादी राजनीति के साथ अर्थव्यवस्था का विकास करने के लिए प्रसिद्ध था।
  • बहमनी साम्राज्य में व्यापार एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि थी। व्यापार के माध्यम से बहमनी साम्राज्य ने सफेद सोना, खाद्य पदार्थ, विदेशी वस्त्र, चांदी, सुरमा, और अन्य वस्त्रादि वस्तुओं का व्यापार करता था। इसके अलावा, विदेशी व्यापारियों को आग्रह किया गया था कि वे बहमनी साम्राज्य में निवास करें और यहां के व्यापार में निवेश करें। इससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई और राज्य का आर्थिक स्थान मजबूत हुआ।
  • कृषि भी बहमनी साम्राज्य की मुख्य अर्थव्यवस्था का हिस्सा थी। कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए साम्राज्य ने गंगा और कृष्णा नदी के पानी का उपयोग किया, जिससे खेती में उत्पादकता बढ़ी। बहमनी साम्राज्य में अनाज, दलहन, तिलहन, जौ, मक्का, गेहूं, चावल, मूंगफली, गन्ना, तंबाकू, तिल, धान्य, और फलदार पेड़-पौधों की खेती की जाती थी। विशेष रूप से बांस की उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण थी, जो विभिन्न उपयोगों के लिए प्रयोग होती थी, जैसे कि घरेलू औजार, निर्माण और नगदी के रूप में।
  • सांस्कृतिक विकास भी बहमनी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग था। साहित्य, कला, शिल्पकला, संगीत, और साहित्यिक कार्यों का प्रचार हुआ। विशेष रूप से, विद्वानों, कवियों, वक्ताओं, और कलाकारों को समर्थन दिया गया, जिन्होंने उत्कृष्टता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बहमनी साम्राज्य के दौरान हिंदी, उर्दू, तेलुगु,अरबी, तामिल, मराठी, पर्शियन, गुजराती और कन्नड़ भाषाओं में साहित्यिक कार्य किए जाते थे।

बहमनी साम्राज्य के पतन का कारण (Causes of the decline of the Bahmani Kingdom)

  • आपसी द्वंद्व के कारण:- बहमनी साम्राज्य की आंतरिक द्वंद्वों ने उसे नष्ट कर दिया। राजा की सत्ता के लिए उनके परिवार और अधिकारियों के बीच अधिकार की लड़ाई और द्वंद्व हमेशा चल रहे थे। यह आंतरिक असन्तोष साम्राज्य की कमजोरी का कारण बना।
  • अन्य राजाओं के आक्रमण के कारण:- बहमनी साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण थे उस पर आक्रमण करने वाले शासकों के आगमन। अहमदनगर के गळलू खान, बीजापुर के अदिलशाही और गोलकोंडा के क्वारिज्म शासकों ने साम्राज्य के भागों को आक्रमण किया और इससे साम्राज्य की शक्ति में कमी आई।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक विवाद के कारण:- बहमनी साम्राज्य में धार्मिक और सांस्कृतिक विवादों ने भी उसके विनाश को बढ़ाया। समग्र साम्राज्य में विभिन्न धर्मों के अनुयायी थे और उनके बीच धर्मान्तरण और धर्म से संबंधित मुद्दों के कारण साम्राज्य में  अस्थिरता और असंतोष  बढ़ी। बहमनी साम्राज्य में सुन्नी और शिया मुस्लिमों के बीच धर्मीय विवाद था, जो उसे कमजोर कर दिया। यह विवाद साम्राज्य के अंदर व्याप्त होने लगा और साम्राज्य को एकीकृत रखने की क्षमता को कम कर दिया।
  • संकटऔर विद्रोह के कारण :- बहमनी साम्राज्य के अंतिम दिनों में, विद्रोह और संकटों की घटनाएं उसे नष्टि की ओर ले गईं। जैसे, विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के आक्रमण से बहमनी साम्राज्य को बड़ी हानि पहुंची और इसने उसकी सत्ता को कमजोर किया।
  • बहुसंख्यकीय जातिवाद के कारण :- बहमनी साम्राज्य के भीतर बहुसंख्यकीय जातिवाद भी मौजूद था। बहुसंख्यकीय समाजों के बीच असमानता और नफरत  के कारण, साम्राज्य की एकीकरण क्षमता में कमी आई और विद्रोहों का सामना करना पड़ा।

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