टिहरी रियासत का इतिहास (History of Tehri State)
टिहरी रियासत की शुरुआत गढ़वाल में गोरखाओ के आक्रमण के बाद से जुड़ा हुआ है। जब 14 मई 1804 में देहरादून के खुडबुड़ा नामक स्थान पर प्रद्युमन शाह गोरखा कुंवर रंजीत की गोली से वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 1804 से 1815 तक गोरखों ने गढ़वाल पर शासन किया था। इसके बाद इनके पुत्र सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों की मदद से 1815 में गोरखाओं को हराया था और जिसके बाद टिहरी रियासत की शुरुआत हुई थी। इसके प्रथम राजा सुदर्शन शाह बने थे।
टिहरी रियासत के राजाओं का कालक्रम(Chronology of the Kings of the Princely State of Tehri)
- सुदर्शन शाह (1815-1859 ई०)
- भवानी शाह (1859- 1871 ई०)
- प्रताप शाह (1871-1886 ई०)
- कीर्ति शाह (1886-1913 ई०)
- नरेन्द्र शाह (1913 - 1946 ई०)
- मानवेन्द्र शाह (1946- 1949 ई०)
सुदर्शन शाह(Sudarshan Shah)(1815-1859 ई)
- गढ़वाल पर गोरखा अधिपत्य हो जाने पर सुदर्शन शाह कनखल ज्वालापुर जाकर राजपरिवार के साथ रहने लगे थे।
- इस समय उनकी उम्र 20 वर्ष थी और ग्यारह वर्ष तक निरन्तर अपने खोए हुए राज्य को पाने के लिए प्रयत्न कर रहा थे।
- इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सुदर्शन शाह 1809 से 1811 तक बरेली में भी रहे थे।
- बरेली प्रवास में उसका परिचय कैप्टन हियरसी नामक एक धनी एंग्लो-इंडियन से हुआ जिसकी करेली रियासत बरेली के पास थी।
- सुदर्शन शाह ने कंपनी सरकार से सहायता मांगी थी फलतः कंपनी सरकार ने गोरखों के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की और 1815 में गोरखे पराजित हुए थे।
- कंपनी ने सुदर्शनशाह से युद्ध व्यय के रूप में 5 लाख रूपये की मांग की जिसे सुदर्शन शाह चुकाने में असमर्थ थे।
- अंततः 1815 में गढ़राज्य का विभाजन किया गया था।
- सुदर्शन शाह को रंवाई और दून परगनों को छोड़कर अलकनंदा व मंदाकिनी का पश्चिमी भाग मिला लिया। लेकिन सुदर्शनशाह अपनी राजधानी श्रीनगर बनाना चाहते थे।
- सुदर्शन शाह फ्रेजर के साथ श्रीनगर पहुंचा लेकिन उसे श्रीनगर नहीं मिला था।
- जुलाई 1815 में ट्रेल कुमाऊँ का असिस्टेंट कमिश्नर नियुक्त हुआ था।
- उसे गढ़वाल में भूमि प्रबंध के लिए भेजा गया था।
- सन् 1816 में ट्रेल की रिपोर्ट के आधार पर नागपुर परगने में टिहरी व ब्रिटिश गढ़वाल की सीमाएं निर्धारित की गई थी।
- 4 मार्च 1820 ई० को सुदर्शनशाह एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य एक संधि हुई जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार ने टिहरी गढ़वाल पर राजा सुदर्शन शाह का अधिकार स्वीकार किया।
- राजगुरू नौटियाल द्वारा सुदर्शन शाह का राजतिलक भिलंगना नदी के तट पर सेमल के मैदान में किया गया।
- इसके बदले गढ़ नरेश ने किसी भी विपत्ति के समय अंग्रेज सरकार को सहायता का वचन दिया।
- सन् 1824 में रंवाई का परगना भी टिहरी राज्य में शामिल कर दिया गया।
- 26 दिसम्बर 1842 को टिहरी राज्य में ब्रिटिश सरकार का राजनैतिक प्रतिनिधित्व कुमाऊँ के कमिश्नर को सौंप दिया गया।
- 28 दिसंबर 1815 को महाराजा सुदर्शन शाह ने टिहरी को अपनी राजधानी बनाया।
- 6 फरवरी 1820 को मूरक्राफ्ट टिहरी पहुंचा।
- मूरक्राफ्ट के अनुसार सुदर्शनशाह कार्यशील एवं बुद्धिमान शासक था। लेकिन उसे इस बात का दुख था कि वह अपने पूर्वजों की राजधानी श्रीनगर को नहीं पा सका था।
- महाराजा सुदर्शनशाह ने अपने लिए एक राजाप्रसाद 'पुराना दरबार' बनवाया था जो कि टिहरी नगर के डूबने से जीवशीर्ण अवस्था में है।
- सन् 1848 में इन्होंने इस प्रसाद का निर्माण प्रारम्भ करवाया था।
- नया दरबार का निर्माण 1880-81 में कीर्ति शाह ने कराया। पुराना दरबार उसके भाई विचित्रशाह के हिस्से गया था।
- सुदर्शन शाह ने अंग्रेज अधिकारी फ्राइटन की बाघ से रक्षा की थी। और टिहरी में पहला भूमि बंदोबस्त 1823 में इसी के काल में हुआ था।
प्रीतम शाह का आगमन (Arrival of Pritam Shah)
- सुदर्शन शाह का चाचा प्रीतमशाह 1804 से नेपाल में बंदी था। वहीं उसका विवाह हुआ।
- सन् 1817 में नेपाल दरबार ने प्रीतमशाह को टिहरी गढ़वाल जाने की अनुमति दे दी।
- राजा ने उसके निर्वाह के लिए समुचित व्यवस्था की और जब तक वह जीवित रहा पिता के समान उसका सम्मान किया था।
- 1826 ई० में निःसन्तान प्रीतमशाह की मृत्यु हो गई थी।
- गोरखा युद्ध की समाप्ति पर कम्पनी सरकार ने शिवराम व काशीराम नामक मुआफीदारों को पुनर्स्थापित कर दिया था।
- सकलाना के ये जागीरदार इस समय स्वयं को राजा से भी बढ़कर मानने लगे। फलस्वरूप इनके विरूद्ध सकलाना के कमीण, सयाणा एवं प्रजा को संगठित होकर आन्दोलन करना पड़ा था।
- टिहरी राज्य में यह पहला जन आन्दोलन था।
- सन् 1851 में भी सकलाना के मुआफीदार अपने कर्मचारियों के साथ जब अठूर वासियों से तिहाड़ वसूलने लगे तो अठूर वासियों ने विद्रोह कर दिया। जिसका नेतृत्व बद्रीसिंह अस्वाल ने किया।
- सुदर्शन शाह के समय भूमिकर 1/8 भाग अन्नादि के रूप में तथा 7/8 भाग भाग नकद राशि के रूप में एकत्र किया जाता था।
- सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम इन्हीं के काल में हुआ राजा द्वारा अंग्रेजों को मदद प्रदान की गई। राजा की राजभक्ति को पुरस्कार स्वरूप ब्रिटिश सरकार उसे बिजनौर देना चाहती थी लेकिन इसी बीच राजा की मृत्यु हो गयी।
- अजबराम ने राजा का दाता ज्ञाता सूरमा बताकर तथा भजन राय कवि ने उसे दृढं वचन वाला राजा कहकर उसकी प्रशंसा की है।
- वह विपत्ति में घबराने वाला व सम्पत्ति में इतराने वाला व्यक्ति न था।
- राज्य प्राप्त होने पर भी वह अपना जीवन सादगी से बिताता रहा।
- सुदर्शन शाह कला प्रेमी भी था। उसने मौलाराम को ही नहीं अपितु चैतू, माणूक आदि गढ़वाली चित्रकारों को आश्रय दिया था।
- अनेक संस्कृत ग्रंथों का रचयिता हरिदत्त शर्मा उसका राजकवि था। जिनकी रचना सभाभूषणम् है।
- सुदर्शन कालीन दो बाड़ाहाट प्रशस्ति भी हरिदत्त रचित है।
- सुदर्शन शाह राज्यकालीन बाड़ाहाट प्रशस्तियों में उसकी प्रशंसा करते हुए उसे कलाविदों का शिरोमणि बताया गया है।
- सुदर्शनशाह के दरबारी कुमुदानंद ने सुदर्शनोदय काव्य लिखा।
- इनके काल में मौलाराम ने सुदर्शन दर्शन कविता लिखी। जिसमें इन्होंने राजा को सूम, कृपण व खशिया नृप कहा।
- भक्तदर्शन ने लिखा है कि सुदर्शनशाह एक योग्य व प्रजावत्सल राजा था।
- गुमानी पंत व मनोरथ पंत कुमाऊं से और मोक्षमंडल नेपाल से इनकी राजसभा में आये थे।
- 1828 में सुदर्शनशाह ने सभासार की रचना की जो सात खंडो में है। यह एक मुक्तक काव्य है। यह काव्य ब्रजभाषा में है। इस काव्य में सुदर्शनशाह ने खुद को सूरत कवि कहा है।
- सुदर्शन शाह को उनकी प्रजा बोलांदा बद्री कहकर पुकारती थी।
- इनकी पत्नी का नाम खनेती था जिसने 1857 में उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
भवानी शाह (Bhawani Shah)(1859-71 ई)
- राजा सुदर्शन शाह अपने जीवनकाल में अपने ज्येष्ठ पुत्र भवानी शाह को उत्तराधिकारी घोषित कर चुका था।
- भवानी शाह अत्यंत सरल प्रवत्ति का व्यक्ति था जो अपने दान प्रवृत्ति के कारण प्रसिद्ध हुआ था।
- भवानी शाह कठौच कुल की कन्या गुण देवी से उत्पन्न हुआ था परन्तु छोटी रानी खनेती भवानी शाह से असंतुष्ट रहती थी। फलस्वरूप उसने राजकुमार शेरशाह को भवानी शाह के विरूद्ध कर दिया था।
- अतः शेरशाह व भवानी शाह के बीच 1859 में उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। भवानी शाह युद्ध हार गया था।
- शेरशाह 9 माह राजगद्दी पर आसीन रहा था।
- भवानी शाह के राज्याभिषेक होने तक षडयंत्रों का विवरण मियां प्रेम सिंह की गुलदस्त तवारीख कोह टिहरी गढ़वाल तथा टिहरी गढ़वाल स्टेट रिकॉर्डस में मिलता है।
- अंग्रेजी सरकार ने रैम्जे को हस्तक्षेप करने के लिये भेजा।
- कमिश्नर रैम्जे ने टिहरी आकर 6 सितम्बर 1859 को भवानी शाह को राज्यभार देने की घोषणा की थी।
- 25 अक्टूबर 1859 को भवानी शाह का राज्याभिषेक हुआ।
- रैम्जे ने विद्रोह के भय से उसे देहरादून में नजरबन्द कर दिया।
- भवानी शाह ने 1862 में देवप्रयाग में संस्कृत-हिन्दी की प्रारम्भिक पाठशाला खोली।
- भवानी शाह का विवाह मंडी के राजा की दो राजकुमारियों से हुआ था।
- बड़ी रानी मण्डियाली से प्रताप शाह तथा हिण्डूरू जी से विक्रम शाह का जन्म हुआ।
- इसके अतिरिक्त प्रमोद सिंह आदि उसके 6 पुत्र थे।
प्रताप शाह(Pratap Shah)(1871-86 ई)
- प्रताप शाह को हिन्दी, फारसी तथा अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त थी।
- प्रताप शाह ने अपने राज्यकाल में अनेक सुधार किए थे।
- सन् 1873 में इसने भू-व्यवस्था करवाई जिसे ज्यूला पैमाइश कहते हैं।
- टिहरी में प्रताप प्रिंटिंग प्रेस खोला जो राज्य का पहला प्रिंटिंग प्रेस था।
- 1876 में प्रताप शाह ने खैराती शफाखाना स्थापित किया। इसमें भारतीय व यूरोपीय पद्धति से चिकित्सा होती थी।
- सन् 1877 में राजा ने प्रतापनगर बसाया था।
- राजा ने राजधानी में 1883 में अंग्रेजी स्कूल की स्थापना की। कीर्ति शाह ने इसी का नाम प्रताप हाईस्कूल रखा था।
- अंग्रेजी स्कूल खोलकर प्रताप शाह ने गढवाल में अंग्रेजी शिक्षा की शुरूआत की थी।
- राजस्व वसूली में कठिनाई हाने पर उसने राज्य को 22 पट्टियों में विभक्त किया और उनमें एक-एक कारदार की नियुक्ति की।
- कारदार ब्रिटिश गढ़वाल के पटवारियों के समान थे परन्तु उनकी नियुक्ति 1 वर्ष के लिए ही की जाती थी।
- उन्होंने टिहरी-मसूरी व टिहरी-श्रीनगर दो राजमार्गों का निर्माण करवाया था।
- 1885 में उसने महारानी गुलेरिया की सलाह से राज्य में प्रचलित खेण (बगार), पाला (दरबार में दूध, दही, घी पहुंचाना) तथा बिशाह (अन्न के रूप में कर भण्डार में पहुंचाना) नामक कुप्रथाओं को समाप्त किया।
- पाला बिसाऊ नामक कर की समाप्ति का श्रेय लछमू कठैत को जाता है।
- लछमू कठैत ने राजदरबार में अनेक सुधार किये। सुधारों के प्रति सजग 33 वर्षीय लछमू कठैत की हत्या भी राजपदाधिकारियो द्वारा उसे विषैली मदिरा देकर की गई थी।
- उसने आदेश दिया की हीन जातियों के लोग न किसी के हाथ विक्रय किए जाएं न उन्हें दास बनवाया जाए।
- यही नहीं, उसके द्वारा दलितों को गांवों में भूमि दिलवाई गई।
- प्रताप शाह के ही शासनकाल में कवि देवराज ने गढ़वाल राजा वंशावलि की रचना की।
- कवि ने दाता द्विजानां च सुमार्गगामी भर्ता प्रजायाः सुविचायूर्यकर्ता कहकर उसकी प्रशंसा की है।
- इनकी प्रथम रानी कठौची का विवाह के पश्चात ही डेढ़ वर्ष में देहांत हो गया था।
- महारानी गुलेरिया कुन्दनदेई से उसके तीन पुत्र हुए - युवराज कीर्ति शाह, विचित्र शाह और सुरेन्द्र शाह।
- प्रताप शाह ने ही संकल्प लिया था कि वह अपनी राजधानी को मसूरी से भी बेहतरीन बनाऐंगे।
- प्रताप शाह द्वारा टिहरी राजशाही में पुलिस प्रशासन व्यवस्था की स्थापना की गयी थी।
राजा कीर्ति शाह(Raja Kirti Shah) (1886-1913 ई)
- कीर्ति शाह भी अवयस्क अवस्था में गद्दी पर बैठे और राजमाता गुलेरिया ने उसके चाचा विक्रम शाह को संरक्षक नियुक्त किया परन्तु लगभग एक वर्ष पश्चात् ही उसकी अकुशलता को देखकर राजमाता ने शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया और उसकी सहायता के लिए एक संरक्षण समिति काउंसिल ऑफ रिजेन्सी नियुक्त की गई थी।
- सयुक्त प्रान्त के गवर्नर सर अलफ्रेड कालविन ने स्वयं टिहरी पहुंचकर राजमाता के पक्षपात रहित शासन प्रबंध की प्रशंसा की थी।
- 18 वर्ष होन पर महारानी ने 16 मार्च 1892 को कीर्तिशाह को राज्यभार सौंप दिया और स्वयं तपस्या करने लगी थी।
- अपने आभूषण बेचकर राजमाता ने राजधानी में बद्रीनाथ, रंगनाथ, केदारनाथ व गंगामाता के चार मन्दिर व एक धर्मशाला का निर्माण किया गया था।
- वर्ष 1892 में कीर्तिशाह का विवाह नेपाल प्रधानमंत्री राजा जंगबहादुर की पौत्री नेपालिया राजलक्ष्मी से हुआ।
- महाराजा कीर्त शाह ने टिहरी में प्रताप हाईस्कूल (1891), कैम्पबेल बोर्डिंग हाउस (1907) तथा हिबेट संस्कृत पाठशाला (1909) खोली गईं थी।
- राज्य में 25 प्राइमरी पाठशालाएं खोली गई थी।
- गढवाली ठेकेदार को प्रोत्साहन देने के लिए उसने ठेकेदार गंगाराम खण्डूरी को देवदार के 1500 पेड़ निःशुल्क दिए।
- किसानों की सुविधा हेतु दो लाख रूपए से बैंक ऑफ गढ़वाल खोला गया था।
- ये प्रथम नरेश थे। जिन्होंने टिहरी में पहली बार बिजली की सुविधा से जनता को अवगत कराया था।
- टिहरी में नगरपालिका की स्थापना की थी।
- टिहरी प्रिंटिंग प्रेस से पाक्षिक पत्र रियासत टिहरी गढ़वाल दरबार गजट प्रकाशित हुआ था।
- अपने नाम से 1896 में कीर्तिनगर की स्थापना की थी।
- टिहरी में 20 जून 1897 में 110 मी ऊंचा घंटाघर और नए राजभवन का निर्माण किया था।
- इनके द्वारा यमुना पर हिबेट ब्रिज बनाया गया था।
- महाराजा कीर्ति शाह ने एक सर्वधर्म सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
- सन् 1902 में स्वामी रामतीर्थ टिहरी गढ़वाल में आए।
- राजा द्वारा उन्हें जापान में आयोजित होने वाले सर्वधर्म सम्मेलन में सम्मलित होने का आग्रह किया गया था।
- स्वामी रामतीर्थ का जन्म 22 अक्टूबर 1873 को दिपावली के दिन पंजाब के गुंजरावाला में हुआ था और 17 अक्टूबर 1906 को दिपावली के दिन ही इन्होंने टिहरी के पास भिलंगना नदी में जल समाधि ले ली।
- कीर्ति शाह ने स्वामी रामतीर्थ के लिये गोलकोठी नामक भवन बनाया था।
- टिहरी के राजाओं में महाराजा कीर्ति शाह सर्वाधिक योग्य व आदर्श आचरण वाले राजा हुए थे।
- राज्यभार संभालने के प्रारम्भ में ही राजा की शासन कुशलता की ब्रिटिश शासक भी प्रशंसा करने लगे थे।
- सन् 1892 में हुए आगरा दरबार में वायसराय लैंसडाउन ने भारतीय नरेशों के समक्ष उसके गुणों की प्रशंसा करते हुए कहा था 'बड़े सौभाग्य की बात होगी यदि भारत के राजकुमार कीर्ति शाह को अपना आदर्श बना लें।
- सन् 1907 में टिहरी आये कैम्पबेल का कथन है कि कीर्ति शाह जैसा राजा मैंने भारतवर्ष के किसी भाग में नहीं पाया।
- इन्होंने उत्तरकाशी में एक कुष्ठ आश्रम भी खोला।
- कीर्ति शाह के कानूनी सलाहकार तारादत्त गैरोला थे।
- इनके वजीर हरिकृष्ण रतूड़ी थे।
- इन्होंने वजीर हरिकृष्ण रतूड़ी को गढ़वाल की परंपराओं पर आधारित नरेन्द्र हिन्दू लॉ तथा गढ़वाल का इतिहास लिखने के लिए प्रोत्साहित किया था।
- कीर्ति शाह के संरक्षण में ही हरिकृष्ण रतूड़ी ने गढवाल का इतिहास लिखा।
- कीर्ति शाह के निजी सचिव भवानी दत्त उनियाल थे।
- कीर्ति शाह ने गढवाली सैपर्स के नाम से फौज बनायी।
- कीर्ति शाह सभी धर्मों का आदर करता था। उसने मुसलमानों के बच्चों की धार्मिक शिक्षा के लिये टिहरी में एक मदरसा खाला था।
- कीर्ति शाह की शिक्षा अजमेर के मेयो कालेज में हुयी थी।
- इनके दो पुत्र थे - नरेन्द्र शाह और सुरेन्द्र सिंह।
- कीर्ति शाह संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फ्रेंच व अंग्रेजी भाषाओं का प्रकाण्ड विद्वान था।
- उसने टिहरी में एक वेधशाला का निर्माण भी किया जिसके लिये विदेशों से यंत्र खरीदे गये थे।
- कीति शाह ने टाइपराइटर का अविष्कार भी कर लिया था।
कीर्ति शाह को सम्मान(Honours to Kirti Shah)
- 1898 में ब्रिटिश सरकार ने कीर्ति शाह को कम्पेनियन ऑफ इंडिया की उपाधि प्रदान
- सन् 1900 में वे इंग्लैंड गये जहां 11 तोपों की सलामी उन्हें दी गयी थी।
- 1901 में नाइट कमांडर की उपाधि मिली।
- दिल्ली दरबार 1903 में 'सर' (के सी एफ आई) की उपाधि दी गयी।
- 1906 में कीर्ति शाह को राज्य कौंसिल का सरकारी सदस्य बनाया गया।
नरेन्द्र शाह(Narendra Shah) (1913-1946ई)
- महाराजा कीर्ति शाह के देहांत के समय नरेन्द्र शाह 13 वर्ष का था। ऐसी अवस्था में राजमाता नेपोलिया ने संरक्षण समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला।
- विचित्र शाह इस समिति के वरिष्ठ सदस्य थे।
- राजमाता के अस्वस्थ होने पर क्रमशः सेमियर व म्योर अध्यक्ष रहे थे।
- नरेन्द्र शाह को शिक्षा के लिये मेयो कॉलेज अजमेर भेज दिया गया।
- मेयो कॉलेज अजमेर में विद्याध्यन काल में ही 1916 में नरेन्द्र शाह का विवाह क्यूंठल की राजकुमारी कमलेन्दुमति तथा इन्दुमति के साथ हो चुका था।
- सन् 1916 में टिहरी की सीमा मुनि की रेती तथा टिहरी व देहरादून के बीच चन्द्रभागा नदी द्वारा निर्धारित की गई।
- सन् 1916 से राज्य में भूमि व्यवस्था प्रारंभ की गयी। जिसे डोरी पैमाइश कहा गया।
- नरेन्द्र शाह के समय हरिकृष्ण रतूड़ी ने 1917 में नरेन्द्र हिंदू लॉ की स्थापना की।
- हरिकृष्ण रतूड़ी द्वारा रचित नरेन्द्र हिन्दू लॉ को न्याय का आधार बनाया गया। यह ग्रन्थ राज्य व्यय से 1918 में प्रकाशित हुआ।
- राजा नरेन्द्र शाह ने अपने नाम से नरेन्द्र नगर की स्थापना 1919 में की। जहां राजभवन का निर्माण 1924 में पूर्ण हुआ।
- 1925 में राजधानी वहां स्थानांतरित की गई थी।
- अपने शासनकाल के प्रथम वर्ष में ही पंचायतों की स्थापना की गई थी।
- 1920 में साहूकारों के भारी ब्याज से मुक्ति पाने के लिए कृषि बैंक की स्थापना की गई थी।
- उच्च शिक्षा की सुविधार्थ 1920 में छात्रवृत्ति निधि स्थापित की गई।
- सन् 1921 में टिहरी में जनगणना की गई थी।
- राज्य शासन में प्रमुख व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए उसने 1923 में राज्य प्रतिनिधि सभा की स्थापना 1923 में ही राजधानी टिहरी में सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना हुई। जो अब सुमन लाइब्रेरी के नाम से जाना जाती है।
- 1929 में उसने दीवान पद पर एक सुयोग्य प्रशासक चक्रधर जुयाल की नियुक्ति की।
- इन्होंने बनारस के हिन्दु विश्वविद्यालय को सन् 1933 में महाराजा कीर्ति शाह की स्मृति में 1 लाख रूपये की रकम और 6000 रूपये की वार्षिक सहायता दान की थी।
- उस पूंजी के आधार पर ही बीएचयू में सर कीर्ति शाह चेयर ऑफ इण्डस्ट्रियल कैमिस्ट्री की स्थापना की गई थी।
- शिक्षा के प्रति अथाह प्रम को देखकर बनारस विश्वविद्यालय ने भी इन्हें सन् 1937 में एलएलडी की उपाधि से अलंकृत किया गया था।
- 1938 में नरेन्द्र शाह ने कीर्तिनगर में हाईकोर्ट की स्थापना की थी।
- 1940 में प्रताप हाईस्कूल इण्टर कॉलेज बना।
- राजमाता नेपोलिया ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए 1942 में नरेन्द्र नगर में एक कन्या पाठशाला खोली गई थी।
- न्याय सुविधा के लिए नरेन्द्र शाह ने परगनों में परगनाधिकारी नियुक्त किए और सिविल एण्ड सेशन जज की अदालत स्थापित किए थे।
- उनके दो पुत्र थे - बड़ी रानी कमलेन्दुमति से कंवर विक्रमशाह व छोटी रानी इन्दुमति से मानवेन्द्र शाह का जन्म हुआ था।
- नरेन्द्र शाह ने शेरशाह सूरी की तरह नरेन्द्र नगर को बाह्य सड़कों से जोड़ने के लिये अनेक सड़कों का निर्माण कराया।
- अपनी शासन अवधि में उन्होंने वन विभाग की उन्नति के लिए विशेष कदम उठाये तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उन्होंने गढराज्य के कई युवकों को प्रशिक्षण हेतु फारेस्ट ट्रेनिंग स्कूल देहरादून भेजा।
- नरेन्द्र शाह के शासनकाल में ही दो कलंकपूर्ण घटनाऐं घटी जिनके लिये नरेन्द्र शाह को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- इनमें प्रथम घटना है रवाई कांड। जो 30 मई 1930 में यमुना नदी के किनारे तिलाड़ी के मैदान में घटी थी तथा दूसरी घटना है 25 जुलाई 1944 को टिहरी जेल के अंदर 84 दिनों के लंबे अनशन के बाद श्रीदेव सुमन का बलिदान ।
- जहां तक 1930 की बात है नरेन्द्र शाह उस समय यूरोप की यात्रा कर रहे थे। वे इस घटना से पूर्णतः अनभिज्ञ थे।
- दूसरी घटना घटने के कुछ दिन पूर्व ही नरेन्द्र शाह बैठक में भाग लेने के लिये बंबई चले गये थे और स्पष्ट रूप से यह आदेश दे गये थे कि सुमन जी को मुक्त कर दिया जाए।
- नोट- चक्रधर जुयाल को टिहरी का जनरल डायर कहा जाता है।
- नरेन्द्र शाह की मृत्यु 22 दिसंबर 1950 को कार एक्सीडेंट में हुई थी।
मानवेन्द्र शाह(Manvendra Shah)
- मानवेन्द्र शाह का राज्याभिषेक 5 अक्टूबर 1946 को हुआ।
- इनके शासन काल में किसानों ने 1947 में सकलाना विद्रोह किया। जिसका नेतृत्व नागेन्द्र सकलानी व दौलतराम ने किया।
- सकलाना विद्रोह में नागेन्द्र सकलानी व भोलराम की मृत्यु हो गयी थी।
- सन् 1948 में कीर्तिनगर विद्रोह हुआ। इस विद्रोह में दौलतराम की मृत्यु हो गयी।
- 1 अगस्त 1949 को संयुक्त प्रान्त का 50 वॉ जनपद बनाकर टिहरी का भारत संघ में विलीनीकरण हो गया।
- शांति रक्षा अधिनियम 1947 मानवेंद्र शाह के काल में पारित किया गया।
- टिहरी के विलीनीकरण पर परिपूर्णानन्द ने हस्ताक्षर किए।
- मान्वेंद्र शाह की मृत्यु 5 जनवरी 2007 को हुई थी।
- मान्वेंद्र शाह 8 बार सांसद रहे थे।
टिहरी नरेशों का प्रशासन(Administration of Tehri Kings)
- गढ़नरेश राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
- राज्य का सर्वोच्च मंत्री मुख्तार होता था।
- गढ़नरेशों के मंत्रिमण्डल में धर्माधिकारी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। मौलाराम ने उसके स्थान पर ओझा गुरु का उल्लेख किया है।
- परगने में सुव्यस्था रखना, सीमांत की रक्षा करना, राजस्व की वसूली आदि कार्य फौजदार का होता था।
- राजधानी के सुरक्षाधिकारी गोलदार कहलाते थे।
- नेगीयों को मंत्रिमण्डल में स्थान दिया जाता था। महत्वपूर्ण कार्यों में परामर्श लिया जाता था।
- तीव्रगामी संदेशवाहक को चणु कहलाते थे।
- राज्य के विभिन्न परगनों में राजस्व की वसूली थोकदार के द्वारा होती थी। जो कमीण या सयाणा भी कहे जाते थे।
- थोकदार प्रधान की नियुक्ति करता था तथा उक्त ग्राम से राजस्व वसूली का काम सौंपता था।
- राजा प्रजा के हृदय में एक देवता के समान था - बोलांदा बदरीनाथ साक्षात् बदरीश स्वरूप।
- युवराज को टीका कहा जाता था।
- पंवार राजाओं के नाम के साथ रजवार शब्द का भी प्रयोग हुआ है।
पंवार राजवंश में विद्वानों को आश्रय(Shelter to Scholars in Panwar Dynasty)
- गढ़नरेशों की सबसे अधिक ख्याति चित्रकारों को आश्रय देने से हुई थी।
- उनके आश्रित श्यामदास तोमर और उनके वंशजों ने राजपूत चित्रकला की पहाड़ी शाखा में एक नई तूलिका का
- विकास किया जो गढ़वाली कलम के नाम से प्रसिद्ध है।
- गढ़राज्य में मुगल शैली की चित्रकला आरम्भ करने का श्रेय श्यामदास व उनके पुत्र हरदास को है।
- मौलाराम ने अपने पिता मंगतराम से मुगल शैली की शिक्षा प्राप्त की थी।
- मौलाराम के गुरु का नाम रामसिंह था।
टिहरी साम्राज्य का प्रशासन(Administration of Tehri Kingdom's)
- टिहरी नरेश अपने पूर्वजों के समान ही राज्य में सर्वोच्च पद पर आसीन माने जाते थे।
- समस्त राजकर्मियों की नियुक्ति राजा ही करता था।
- वह मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष होता था।
- राज्य मं दीवान व वजीर सर्वोच्च थे।
- समस्त विभाग व उनके कार्यालय वजीर के अधीन होते थे।
- राज्य की आतंरिक व्यवस्था व नीतियों का निर्धारण दीवान व वजीर के द्वारा होता था।
- सुदर्शन शाह के राज्य काल में प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य को चार ठाणों में बांटा गया था। जिसके मुखिया ठाणदार कहलाते थे।
- ठाणै, परगने व पट्टियों में बांटे गए थे।
- परगने की व्यवस्था करने वाले अधिकारी को सुपरवाइजर कहते थे।
- पंवार राज्य में दफतरी का पद भी एक महत्वपूर्ण पद था। दफतरी का कार्यालय सचिवालय की भांति था। वह राज्य के कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण, वेतन, पुरस्कार, दण्ड जागीर आदि से संबंधित होता था।
- वकील दूत का कार्य करते थे।
- चोपदार राजा के साथ चांदी का दंड लेकर चलता था।
- सोदी राजपरिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करता था।
- उच्च पदाधिकारियों को वेतन जागीर के रूप में दिया जाता था।
टिहरी साम्राज्य की भू-व्यवस्था(Land System of Tehri Kingdom)
- राज्य की समस्त भूमि का पूर्ण स्वामित्व टिहरी नरेशों में निहित था।
- राजा तीन परिस्थितियों में भू-स्वामित्व दूसरे को सौंप सकता था।
- 1. संकल्प या विष्णु प्रीति में- विद्वान ब्राह्मणों को।
- 2. रौत- विशिष्ट साहस एवं वीरता प्रदर्शित करने वाले सैनिक को।
- 3. जागीर- राज्याधिकारियों को।
- जिस व्यक्ति या मंदिर को संकल्प रौत या जागीर में कोई थात (भूमि) दी जाती थी। वह थातवान कहलाता था।
- थातवान उस भूमि पर पहले से बसे कृषकों को हटा नहीं सकता था।
- थातवान की भूमि पर बसे किसान थातवान के खायकर कहलाते थे। जब तक खायकर थातवान को राजस्व देता रहता था। उसे थात से नहीं हटाया जा सकता था।
- राज्य के गांवों में राजा की आज्ञा से जो व्यक्ति किसी कृषि भूमि में कृषि करता था वह आसामी कहलाता था।
- आसामी तीन प्रकार की होते थे-
- मौरूसीदार - जो राजा की आज्ञा से भूमि को बिना किसी दूसरे को अधीनता के कमाता था। और टिहरी नरेश को राजस्व देता था।
- खायकर - जो मौरूसीदार के अधीन उसकी भूमि से कमाता था तथा मौरूसीदार को राजस्व देता था।
- सिरतान - जो मौरूसीदार या खायकर को उसकी भूमि के लिए सिरती या नकद रकम दिया करता था।
- राज्य की आय का प्रमुख साधन सिरती या भूमिकर था। साधारण उर्वरता वाली भूमि पर अन्न के उत्पादन का तिहाड (एक तिहाई) तथा अधिक उर्वरता वाली भूमि के उत्पादन का अधेल (आधा भाग) भूमिकर के रूप में लिया जाता था।
- भोटांतिक से भू-राजस्व वसूली करने वाले अधिकारी को बूढ़ा कहा जाता था।
- राज्य की आय के भू-राजस्व के अलावा अन्य स्रोत भी थे। कुल 68 प्रकार के आय के अन्य स्रोत थे। जिनमें से 36 कर और 32 देय थे।
- घीकर कर - पशुओं पर चराई कर घीकर था।
- झूलिया कर- नदी पार करने हेतु झूलिया कर लिया जाता था।
- मांगा कर- आर्थिक संकट में या युद्ध के समय रक्षा हेतु मांगा कर लिया जाता था।
- शखी नेगीचारी कर - शखी नेगीचारी भूमि व्यवस्था करने वाले अधिकारियों तथा नेगियों को देने के लिये लिया जाने वाला कर था।
- कमीणचारी या सयाणचारी कर - कमीण या सयानों के लिये लिया जाने वाला कर कमीणचारी या सयाणचारी होता था।
- गढ़ नरेशों के काल में ही श्यामदास तोमर व उनके वंशजो ने राजपूत चित्रकला की पहाड़ी शाखा में एक नई तुलिका का विकास किया जो गढ़वाल कलम के नाम से प्रसिद्ध है।
टिहरी रियासत में हुए भूमि बंदोबस्त(Land Settlement in Tehri State)
- टिहरी रियासत में कुल 5 भूमि बंदोबस्त हुए थे।
- पहला - 1823 - सुदर्शन शाह
- दूसरा - 1860 - भवानी शाह
- तीसरा - 1873 - प्रताप शाह
- चौथा - 1903 - कीर्ति शाह
- पांचवा - 1924 - नरेन्द्र शाह
टिहरी रियासत में स्वास्थ्य व्यवस्था (Health Care in Tehri Riyasat)
- सन् 1876 में प्रताप शाह ने राज्य में पहला खैराती शफाखाना स्थापित किया था।
- कीर्ति शाह ने तीर्थ यात्रा मार्गों पर छोटे-छोट औषधालयों की स्थापना की तथा चेचक को रोकने हेतु टीकाकरण प्रारम्भ करवाया था।
- 1934 में रेड क्रास सोसायटी की स्थापना की गई थी।
- 1939 में राज्य में कुष्ठ विधान पारित किया गया था।
- 1943 में राज्य में टीका विधान पारित किया गया था।