अल्मोड़ा जनपद का इतिहास(History of Almora District)
अल्मोड़ा जनपद सन् 1839 में अस्तित्व में आया था। इसका नाम अल्मोड़ा किल्मोड़ा घास के नाम पर पड़ा था। इस घास का प्रयोग बारबेरी क्लोराइड प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस अम्ल का सबसे बड़ा खरीददार देश जापान है। किल्मोड़ा घास का वैज्ञानिक नाम ह्यूमस अरिस्टाटा है। अल्मोड़ा नगर की स्थापना 1560 में चंद वंश के 43वें शासक भीष्म चंद ने की और बालोकल्याण चंद ने चंद वंश की दूसरी राजधानी बनाया और मुगल प्रभाव के कारण कुछ समय के लिए इसका नाम आलमनगर रखा था। अल्मोड़ा को जिस समय राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित किया जा रहा था। उस समय इसे राजापुर या रामक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। चंद वंश की पहली राजधानी चंपावत थी। अल्मोड़ा कोसी और सुयाल नदी के मध्य स्थित है। अल्मोड़ा से सबसे लम्बी सीमा नैनीताल और सबसे छोटी सीमा चम्पावत की लगी हुई है।
अल्मोड़ा के बारे में महात्मा गांधी ने मेरी कुमाऊँ यात्रा तथा स्वामी विवेकानंद ने कोलंबो से अल्मोड़ा में अल्मोड़ा के बारे में लिखा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पण्डित नेहरू को कुछ समय अल्मोड़ा कारागार में बन्द करके रखा गया था। नेहरू को 1934 और 1945 में दो बार जेल में रखा गया। अल्मोड़ा को जिला मुख्यालय 13 अक्टूबर 1892 को बनाया गया। कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है। अल्मोड़ा उत्तराखण्ड का एकमात्र ऐतिहासिक जीवित नगर है। प्रमुख वैज्ञानिक रोनॉल्ड रॉस का जन्म अल्मोड़ा में हुआ था इन्होंने मलेरिया के टीके की खोज की जिसके इन्हें 1902 में नोबल पुरस्कार मिला था। इनका जन्म 13 मई 1857 को हुआ था। रंगीलो बैराट अल्मोड़ा जनपद के गेवाड़ क्षेत्र के अलावा उत्तरकाशी को भी कहा जाता है। पौराणिक दृष्टि से मानसखंड में अल्मोड़ा का प्राचीन नाम रामक्षेत्र या रामशिला क्षेत्र मिलता है। अभिलेखों की दृष्टि से त्रिमलचंद के 1628 ई के ताम्रपत्र में बाजबहादुर चंद के 1000 के ताम्रपत्र में अल्मोड़ा शब्द का उल्लेख है। अल्मोड़ा के कलैक्टर कुइकशक में अल्मोड़ा के नाम एवं खूबसूरती से प्रेरित होकर अपनी पुत्री का नाम अल्मोड़ा रखा था।
- स्थापना – 1891 ई.
- समुद्रतल से ऊंचाई– 1750 मी
- क्षेत्रफल– 3139 वर्ग किमी
- जनघनत्व– 198 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
- लिंगानुपात – 1139 (राज्य में सर्वाधिक)
- शिशु लिंगानुपात – 922 (राज्य में सर्वाधिक)
- अल्मोड़ा की दशकीय वृद्धि दर- (-1.28) प्रतिशत
अल्मोड़ा के उपनाम(Nicknames of Almora)
इसे बाल मिठाई का घर, ताम्र नगरी, और पीतल नगरी कहा जाता है।
- मन्दिरों की नगरी (द्वाराहाट)
- उत्तर की काशी या साक्षी (विभाण्डेश्वर)
- इसे सांस्कृतिक नगरी उठ
- पटाल नगरी
- नोट: स्टील नगरी - कोटद्वार (पौढ़ी)
अल्मोड़ा के प्राचीन नाम(Ancient Names of Almora)
अल्मोड़ा को प्राचीन में रामक्षेत्र, राजापुर और खगमरा कोट कहा जाता था।
अल्मोड़ा के किले(Forts of Almora)
अल्मोड़ा में खगमरा किला, लालमण्डी किला (फोर्ट मोयरा किला), मल्ला महल, अष्टमहल दुर्ग, पड्यार कोट, नैथड़ा का किला और तल्ला महल आदि प्रमुख किले है।
अल्मोड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थल(Major Attractions of Almora)
अल्मोड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में फोर्ट मोयरा, लाल बाजार और पलटन बाजार शामिल है।
कुणिन्द मूर्तियों व मुद्राओं का संग्रहालय
नंदा देवी मन्दिर, टमट्यूणा मौहल्ला, चितई मन्दिर, कसार देवी, सिमतोला ईको पार्क, मोहन जोशी पार्क और ब्राइट एण्ड कॉर्नर आदि शामिल है।
अल्मोड़ा के प्रसिद्ध मेले(Famous Fairs of Almora)
नंदा देवी मेला, श्रावणी मेला / जारानाथ का मेला (यह मेला जाड़गंगा नदी के किनारे लगता है), सोमनाथ मेला (पशुओं के क्रय-विक्रय से संबंधित), गणनाथ मेला (पुत्र प्राप्ति के लिए रात में दीपक को हाथ में लेकर प्रार्थना की जाती है।), स्याल्दे बिखौती का मेला, देवस्थल का मेला, बिनाथेश्वर का मेला, कसार देवी का मेला, गिर का मेला (तल्ला सल्ट), सालम रंग का मेला, मांसी का मेला, नैनीपातल का मेला आदि प्रसिद्ध मेले लगते है।
अल्मोड़ा के तहसीलें, विकासखंड और विधानसभा क्षेत्र (Tehsils, Development Blocks And Assembly Constituencies of Almora)
तहसीलें (12) विकासखंड (11) विधानसभा क्षेत्र(6)
स्याल्दे स्याल्दे द्वाराहाट
चौखुटिया चौखुटिया सल्ट
भिकियासैंण भिकियासैंण रानीखेत
सल्ट सल्ट अल्मोड़ा
द्वाराहाट द्वाराहाट जागेश्वर
अल्मोड़ा ताड़ीखेत सोमेश्वर (अनुसूचित जाति के आरक्षित)
रानीखेत लमगड़ा
भनौली धौलादेवी
जैती हवालबाग
धौलाछीना ताकुला
लमगड़ा भैसियाछाना
सोमेश्वर
अल्मोड़ा की मुद्रायें(Currencies of Almora)
1979 में अल्मोड़ा से कुणिंद राजाओं शिवदत्त, शिवपालित, हरिदत्त एवं शिवरक्षित, आशोक और गोमित्र की मुद्रायें प्राप्त हुई थी। ये सभी ताम्र मुद्रायें थी। इनका वजन 119-327 ग्रेन तक का है। इन मुद्राओं में नारी, मृग, स्वास्तिक, चक्र, नाग, छत्रयुक्त 6 पर्वत, नंदी, वृक्ष, कलश इत्यादि के चित्र अंकित हैं। वर्तमान में इनमें से अधिकांश मुद्राओं को ब्रिटिश संग्रहालय लंदन में रखा गया है।
अल्मोड़ा का भौगोलिक वर्गीकरण(Geographical Classification of Almora)
अल्मोड़ा को भौगोलिक आधार पर दो भागों में बांटा गया है।
- तेलीफाट- पूर्वी अल्मोड़ा का सीधी धूप वाला क्षेत्र
- सेलीफाट- कम धूप वाला पश्चिमी अल्मोड़ा का क्षेत्र
अल्मोड़ा के परगने(Pargana's of Almora)
अल्मोड़ा में निम्न परगने थे। जिसमें पाली परगना, बारामंडल परगना और चौगर्खा परगना आते है।
1. पाली परगना
- यह पाली पछाऊं नाम से चर्चित है।
- यह लखनपुर बैराट का कत्यूरी राज्य था।
- इसे लखनपुर बैराट के कत्यूरी शासक आंसंतिदेव ने बसाया था।
- यहां का प्रसिद्ध नौला बिरमदेव द्वारा बनाया गया था।
2. बारामंडल परगना
- बारह पट्टियों वाला बारामंडल कुमाऊं का हृदय स्थल माना जाता है।
3. चौगर्खा परगना
- चार पट्टियों वाला जागेश्वर व बिनसर क्षेत्र इसमें आता है।
अल्मोड़ा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(Historical Background of Almora)
1960 से पूर्व पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जनपद की एक तहसील थी। 14 नवम्बर 1997 तक बागेश्वर भी इसी जनपद का हिस्सा था। अल्मोड़ा जनपद की स्थापना 1891 को की गई थी। 1891 तक इसे कुमाऊं जिला नाम से जाना जाता था। 27 अप्रैल 1815 को अल्मोड़ा में अंग्रेजों का अधिकार होने के कारण सारा कुमाऊँ उनके आधिपत्य में आ गया। 3 मई 1815 को गवर्नर जनरल की आज्ञा से ई गार्डनर को कुमाऊँ में प्रथम कमिश्नर बनाया गया था। इसके बाद 1815 से 1835 तक जी डब्लू ट्रेल कुमाऊँ कमिश्नर रहे थे। स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय जिला मजिस्ट्रेट के एल मेहता को अल्मोड़ा का जिला मजिस्ट्रेट बनाया गया। 17 जनवरी 1948 को के. एल. मेहता ने कार्यभार ग्रहण किया था। ब्रिटिश काल में प्रकाशित इतिहास ग्रन्थों से पता चला है कि अल्मोड़ा नगर 1560 में भीष्मचंद ने बसाया था। भीष्मचंद के बाद बालो कल्याण चंद तृतीय ने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित की थी। भीष्मचंद ने खगमरा कोट राजधानी बनाई किंतु रामगढ़ के गणपति गजुआठिंगा ने कोट पर धावा कर भीष्म चंद की हत्या कर दी थी। अल्मोड़ा के लिए ताम्रपत्रों में राजापुर शब्द का प्रयोग किया गया है।
राजा रूद्र चंद के समय अल्मोड़ा में किले व मल्ला महल की स्थापना की गई थी। राजा रूद्र चंद के द्वारा संस्कृत दो ग्रन्थ लिखे गये श्यन शास्त्र और त्रैवणिक धर्म-निर्णय थे। वर्तमान में जहां छावनी है उसे पहले लालमंडी किला कहा जाता था। 1864 में यहां नगरपालिका बनी। जिसके प्रथम अध्यक्ष रेवरेड ओकले व द्वितीय अध्यक्ष रायबहादुर धर्मानंद जोशी थे। 1920 में पंडित मोतीलाल नेहरू अल्मोड़ा आये थे। ताड़ीखेत में पंडित भगीरथ पांडे व देवकीनंदन पांडे ने 1921 प्रेम विद्यालय की स्थापना की थी। मानसखंड में वर्णित ब्रह्म पर्वत द्वाराहाट शिखर पर है। कुमाऊं में गोरखा अत्याचारों की जांच हेतु गठित आयोग रेवन्त काजी की अध्यक्षता में था। 1942 में मालती देवी के नेतृत्व में देश सेवक संगठन की स्थापना की गयी थी। कुमाऊं कमिश्नरी का गठन 1816 में बोर्ड ऑफ फर्रुखाबाद के अधीन किया गया था। कुमाऊं में बच्चों की बिक्री पर प्रतिबंध जून 1815 में कमिश्नर गार्डनर द्वारा लगाया गया था। कुमाऊं में ब्रिटिश शासन का वास्तविक संस्थापक कमिश्नर ट्रेल था। कुमाऊं वाटर रूल्स 1917 में पारित किया गया था। जिसमें 1930 में संशोधन किया गया था। अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना 1870 में अपदस्थ चंद शासक भीम सिंह की अध्यक्षता में की गयी थी।
अल्मोड़ा का गौरवशाली अतीत(Almora's Glorious Past)
स्कन्दपुराण के मानसखण्ड में कौशिकी या कोसी और शाल्मली या सुयाल नदी के मध्य कशाय पर्वत है। पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित विष्णु क्षेत्र को अल्मोड़ा के नाम से जाना जाता है।
अल्मोड़ा जनपद की नदी तंत्र(River Systems of Almora District)
सुयाल नदी अल्मोड़ा के लाखु उड्यार के पास बहती है, जो कोसी की सहायक नदी है। खैरना नामक स्थान पर कोसी नदी में क्षिप्रा नदी का मिलन होता है। सोमेश्वर कोसी नदी के तट पर स्थित है। सोमेश्वर घाटी को कुमाऊँ में धान का कटोरा कहा जाता है। गगास व बिनो पश्चिमी रामगंगा की सहायक नदियां हैं। अल्मोड़ा के भिकियासैंण में रामगंगा में गगास नदी मिलती है। पनार नदी अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ़ की सीमा बनाती है। तडागताल अल्मोड़ा में स्थित है, जिससे सिंचाई हेतु पांच सुरंगे बनाई गई हैं।
अल्मोड़ा के पर्वत (Mountains of Almora)
- हरिया टॉप –जागेश्वर
- रानी पर्वत –अलमोड़ा
- भटकोट पर्वत श्रेणियां –अल्मोड़ा
अल्मोड़ा के झरने (Waterfalls of Almora)
- रुद्रधारी जलप्रपात -कौसानी, अल्मोड़ा रोड पर स्थित है।
- धोकाने वॉटर फॉल–अल्मोड़ा व नैनीताल के बीच स्थित है।
अल्मोड़ा जनपद की घाटियां और गुफाएं (Valleys And Caves of Almora District)
- कोरोमंडल घाटी –अल्मोड़ा
- सोमेश्वर घाटी–कोसी नदी द्वारा निर्मित है।
- सिमलखेत घाटी - अल्मोड़ा
- पनार और मनान घाटी –अल्मोड़ा
- पाण्डुखोली / त्रयम्बक गुफा –द्वाराहाट
अल्मोडा जनपद में खनिज सम्पदा(Mineral Wealth in Almora District)
अल्मोड़ा राज्य का एक मात्र जिला है, जहां चांदी प्राप्त होती है। इसके अलावा सोप-स्टोन व बेस मेटल्स भी प्राप्त होता है। अल्मोड़ा का झिरौली क्षेत्र तांबा और मैग्नेटाइट का उत्पादक क्षेत्र है। अल्मोड़ा के राई और चैनापानी क्षेत्र सीसा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। अल्मोड़ा का डीनापानी और चौखुटिया क्षेत्र में चूना भण्डार है।
अल्मोड़ा जनपद का खेल और परिवहन(Sports And Transport of Almora District)
- हिल मोटर ट्रान्सपोर्ट कंपनी की स्थापना 1920 में ललिता प्रसाद टम्टा ने की थी।
- आठ मंजिला पार्किंग अल्मोड़ा में स्थित है।
- मोहन जोशी पार्क अल्मोड़ा में स्थित है।
- एच. एन. बी. स्टेडियम अल्मोड़ा में स्थित है।
- अल्मोड़ा मे नौ कोनों वाला गोल्फ मैदान है, जो गगास नदी के तट पर स्थित है। इसकी स्थापना 1920 की गई थी।
पण्डित उदयशंकर नृत्य एवं नाट्य अकादमी(Pandit Udayashankar Academy of Dance and Drama)
- उदय शंकर 1937 में अल्मोड़ा में आए और उन्होंने यहां रानीधर नामक स्थान में उदयशंकर इण्डिया कल्चसेण्टर के नाम से प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की थी।
- यहां के लोक जीवन और यहां की रामलीला से उनका गहरा लगाव था।
- गेय पद्धति पर आधारित कुमाऊँनी रामलीला का प्रारंभ अल्मोड़ा में 1860 में देवीदत्त जोशी की प्रेरणा से बद्रेश्वर मंदिर के प्रांगण में हुआ था।
- बैले नृत्य उदय शंकर की ही देन है।
- वर्ष 2003 में अल्मोड़ा के समीप फलसीमा गांव में अब्दुल कलाम द्वारा पण्डित उदय शंकर नृत्य अकादमी शिलान्यास किया था।
स्वामी विवेकानन्द की उत्तराखण्ड की यात्राएं(Swami Vivekananda's visit to Uttarakhand)
- विवेकानन्द ने तीन बार अल्मोड़ा की यात्रा की थी।
- पहली यात्रा 1890 में दूसरी यात्रा 1897 और तीसरी यात्रा 1898 में यात्राएं की थी।
- सदानंद विवेकानंद के संपर्क में आने वाले पहले व्यक्ति थे।
- विवेकानंद हिमालय की यात्रा हेतु 1880 में ऋषिकेश आऐ थे।
- 1890 में विवेकानंद ने काकडीघाट में साधना की थी।
- 1807 में ये अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस में भी कुछ समय रहे थे।
- अल्मोड़ा में स्वामी सूर्यानन्द ने 1909 में एक आश्रम की स्थापना की जो रामकृष्ण कुटीर के नाम से प्रसिद्ध है।
- अद्वैत आश्रम मार्च 1899 में स्थापित किया गया था जो अब चम्पावत जनपद में स्थित है।
अल्मोड़ा के प्रमुख दर्शनीय स्थल(Major Attractions of Almora)
श्री राम शिला मन्दिर (मल्ला महल)
- चंद राजा रुद्रचंद ने 1588 में अष्टमहल दुर्ग में रामशिला मन्दिर का निमार्ण किया।
- चंद राजा बाजबहादुर चंद ने 1671 में गढ़वाल के जूनागढ़ किले को जीतने के बाद नन्दा देवी की मूर्ति अल्मोड़ा लाकर इसी स्थान पर रामशिला मन्दिर में स्थापित किया था।
- सन् 1816 से 1835 के बीच कुमाऊँ कमीश्नर जी डब्लू ट्रेल ने नन्दा देवी की इस मूर्ति को वर्तमान नन्दा मन्दिर में स्थानांतरित कर दिया।
- रामशिला मन्दिर अष्टमहल युक्त है।
- नोट: रामशिला चम्पावत में है जहां पाण्डवों ने जुआ खेला था।
- चंद काल में रामशिला मंदिर को ही मल्ला महल कहा जाता था।
- इसके गर्भगृह में रामपादुका है।
नन्दा देवी मन्दिर
- नंदा चंद राजाओं की कुल देवी हैं।
- अल्मोड़ा में नंदा देवी की स्थापना बाजबहादुर चंद (1638-1678) द्वारा की गई।
- सबसे पहले बाजबहादुर चंद द्वारा मल्ला महल में देवी की स्थापना की गई जिसे ट्रेल द्वारा वर्तमान उद्योतचन्द्रेश्वर मन्दिर में पुनर्स्थापित किया गया था।
- बाजबहादुर चंद के बाद उद्योतचंद गद्दी पर बैठा था। सन् 1690-91 में उद्योत चंद द्वारा चार मन्दिर उद्योत चन्द्रेश्वर, पार्वतीश्वर, त्रिपुरा देवी और विष्णु मन्दिर बनवाए थे।
गोलू देवता
- स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण चंद काल में पंत जाति के लोगों द्वारा किया गया था।
- गोलू देवता को गोरिया, बाला गोरिया, गौर भैरव, ग्वेल, ग्वौल, गोरिल, भनर्या, चौथानी गोरिया, दूधाधरी गोरि आदि नामों से जाना जाता है।
- गोलू की लोकगाथा कत्यूरी शासनकाल से संबंधित हैं। जिसमें गोलू को थैली-धूमाकोट के राजा झलराई पौत्र तथा हलराई का बेटा कहा गया हैं।
- इनकी माता का नाम कालिंका बताया गया है।
- गोरी नदी से प्राप्त होने के कारण गोलू देवता को गोरिया कहा गया।
- भाना धीवर ने गोलू का नाम गोरिल रखा और इनका पालन पोषण किया।
- गोलू देवता को मूर्ति में सिर पर पगड़ी पहने व सफेद घोड़े पर बैठा दिखाया गया है।
- इस स्थान को परमोच्च न्यायालय भी कहा जाता है।
बदरीनाथ मन्दिर
- यह मन्दिर अल्मोड़ा के पलटन बाजार के निकट स्थित है।
पाताल देवी मन्दिर
- यह अल्मोड़ा से 4 किमी की दूरी पर शैलग्राम में पाताल देवी की स्थापना की गई है।
- दीपचंद के समय इस मन्दिर का निमार्ण सुमेर अधिकारी द्वारा किया गया था।
शैव भैरव मंदिर
- अल्मोड़ा में अष्टभैरवों की स्थापना की गई है। जिनमें से शैव या शाह भैरव प्रमुख है।
- उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर - 1690-91 में राजा उद्योत चंद द्वारा स्थापित है।
विश्वनाथ मन्दिर
- यह मन्दिर अल्मोड़ा के पालड़ीग्राम में स्थित है।
- यह मंदिर पालड़ीगाड़ व सुयाल नदी के संगम पर स्थित है।
- इस मन्दिर का निमार्ण दीपचंद के कार्यकाल में सुमेर अधिकारी द्वारा किया गया।
- यही निकट ही मषाण मन्दिर व सती नौला स्थित है।
कसार देवी
- यह अल्मोड़ा कपफड़खान मार्ग पर एक ऊँची चोटी कश्यप चोटी पर स्थित है
- प्राचीन साहित्य में कहा गया है कि काषाय पर्वत यही है।
- कसार देवी मन्दिर का जीर्णोद्धार 2005 में लक्ष्मी निवास बिड़ला द्वारा किया गया।
- यहां काषायेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है।
- यहां से प्राप्त शैलचित्र में गुलाबी तथा लाल रंग से चित्रण किया गया है। कुछ ऊँचाई पर 14 नर्तकों की एक टोली है जो गुलाबी रंग से चित्रित है।
हिप्पी हिल
- 1960-70 के दशक में कसार देवी क्षेत्र में हिप्पी आंदोलन चला था।
- इस क्षेत्र में हिप्पी लोग (विदेशी) बसने के कारण इस क्षेत्र को हिप्पी हिल कहा जाता है।
- 1960 में शुरू यह एक सांस्कृतिक आन्दोलन था।
- हिप्पी एक अपमानजनक रूप में प्रयुक्त होता था।
- यह सामाजिक विद्रोहियों हुतु प्रयुक्त होता था।
क्रैंक रिज
- यह चुंबकीय क्षेत्र है। जिसे वन एलियन बेल्ट भी कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में सनकी मनोवैज्ञानिक तिमोथी लेरी अचानक पहाड़ी पर दौड़ते नजर आते थे। जिसके कारण इस क्षेत्र का नाम कैक रिज पड़ा था।
- क्रैंक का अर्थ सनक होता है।
शारदा मठ
- कसार देवी के परिसर में 1898 में स्वामी विवेकानंद आये थे।
- यह मठ स्त्री संयासिनियों हेतु गठित है।
- बानडी देवी या वृंदा देवी मंदिर
- यह मंदिर वृंदा पर्वत पर स्थित है।
कपिलेश्वर मन्दिर
- यह अल्मोड़ा के सिमल्टी गांव में स्थित है।
- यह फॉसणा शैली में निर्मित है।
- यह कुमिया व शकुनी नदियों के तट पर स्थित है।
नारायणकालीन मन्दिर
- यह मन्दिर काकड़ी व बमरोली गधेरे के संगम पर स्थित है।
- लाखुउड्यार अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर
- राधास्वामी आश्रम - दिगोली
- मुण्डेश्वर महादेव- पिठौनी और पिथुली।
हथ्वालघोड़ा
- यह कपफड़खान से 7 किमी की दूरी पर धौलाछीना मार्ग पर स्थित है।
- स्थानीय लोग इसे भीमसेन की परात, कटोरे आदि के रूप में जानते हैं।
अल्मोड़ा में पुरातात्विक धरोहर(Archaeological Heritage in Almora) है
डीनापानी नामक स्थल से चांदी मिश्रित धातु के प्रतिहार-काल के चौबीस सिक्के प्राप्त हुए हैं जो वर्तमान समय में राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा में संग्रहित हैं। नौला में गुप्तकालीन एवं शंखलिपि में उत्कीर्ण महत्वपूर्ण अभिलेखों की खोज की गई है। अल्मोड़ा नगर के समीप दसाऊँ, पोधर तथा द्वाराहाट में यक्षों की विशाल प्रस्तर प्रतिमाएं मिली हैं। कसारदेवी का छठी सदी का शिलालेख उल्लेखनीय है। इस अभिलेख में वेत्तिला के पुत्र द्वारा रूद्रेश्वर मन्दिर के निमार्ण का उल्लेख किया गया है।
बड़ादित्य सूर्य मन्दिर / कटारमल सूर्य मन्दिर
- यह मंदिर रथ शैली में बना है।
- यह स्मारक राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया गया है।
- स्कन्द पुराण के मानसखण्ड के अंतर्गत इस मन्दिर का उल्लेख बड़ादित्य के नाम से मिलता है। स्थानीय लोग भी इसे बड़ादित्य के नाम से जानते हैं।
- इस मन्दिर का निर्माण कत्यूरी शासक कटारमल्ल ने कराया था।
- इस मन्दिर से तीन लघु अभिलेख मिले हैं। जिनमें एक में मल्लदेव पढ़ा जाता है।
- यह सूर्य मन्दिर पूर्वाभिमुख है।
- यहां सूर्य की तीन मूर्तियां हैं।
- यहां की अधिकांश मूर्तियां खंडित अवस्था में हैं। माना जाता है कि इन मूर्तियों का खंडन रूहेलों द्वारा 1743-44 में किया गया था।
- इन मूर्तियों का निर्माण शकों के काल में हुआ था।
- यहां मुख्य मूर्तियों की संख्या 21 है।
- यहां विभिन्न समूहों में 45 छोट-बड़े मन्दिर हैं।
- कुमाऊँ का इतिहास नामक पुस्तक में बद्रीदत्त पाण्डे ने कत्यूरियों की वंशावली में कटारमल्लदेव को 33वें राजा के रूप में प्रदर्शित किया है और डोटी की वंशावली में 22 वें राजा के रूप में।
- सूर्य मन्दिर के मुख्य गर्भगृह में सूर्य की पारसी वेश में बूटधारी प्रतिमा है।
- इस मंदिर के कपाट काष्ठकला के लिए प्रसिद्ध हैं जो दिल्ली संग्रहालय में रखे गए हैं।
- यह उत्तराखण्ड शैली का मन्दिर है।
- इस मंदिर के समीप गोबिंद बल्लभ पंत हिमालयी पर्यावरण संस्थान भी है।
- यहीं कुमाऊं क्षेत्र का रणचंडी मंदिर भी है।
- 1815 में कर्नल निकोलस ने गोरखों पर आक्रमण करने के लिये इसे अपना प्रमुख केन्द्र बनाया था।
- उड़ीसा के कोर्णाक मंदिर के बाद इस मंदिर को देश के दूसरे सूर्य मंदिर का स्थान प्राप्त है।
राज्य के प्रमुख सूर्य मन्दिर
- कटारमल सूर्य मन्दिर – अल्मोड़ा
- गल्ली या स्यूरा का सूर्य मन्दिर– अल्मोड़ा
- मढ़ का सूर्य मन्दिर– पिथौरागढ़
- खेतीखान का सूर्य मन्दिर –लोहाघाट, चम्पावत
- पलेठी का सूर्य मन्दिर– देवप्रयाग, टिहरी
- कुलसारी का सूर्य मन्दिर–चमोली
- भटवाड़ी का सूर्य मन्दिर–उत्तरकाशी
- क्यार्क का सूर्य मन्दिर–पौढ़ी
- कंडारा का सूर्य मन्दिर- रुद्रप्रयाग
- रमकादित्य, सुई, चौपाता, दुगई-आगर के सूर्य मन्दिर - पिथौरागढ़
नरसिंही देवी मन्दिर
- यह मन्दिर गल्लीवस्यूरा में स्थित है।
- इस मन्दिर का निमार्ण देवीचंद ने किया था।
- नेपाल के बाद सिर्फ उत्तराखण्ड में ही नरसिंही देवी का मन्दिर स्थित है।
- देवस्थल महादेव मन्दिर– महता गांव, अल्मोड़ा।
- कमलेश्वर महादेव –स्यूनराकोट पट्टी, अल्मोड़ा
- इस मंदिर की स्थापना प्रमुख संत महादेव गिरि बाबा के द्वारा 1954 में की गयी।
- महारूद्रेश्वर मन्दिर समूह– ग्राम बल्सा, खूंट
- हैड़ाखान आश्रम –शीतलाखेत, अल्मोड़ा
स्याही देवी मन्दिर - शीतलाखेत
- शीतलाखेत कुमाऊँ के खुले मैदान के लिए प्रसिद्ध है।
- शीतलाखेत में स्काउटिंग के कैम्प भी लगते हैं।
- खूट गांव –अल्मोड़ा।
- यह पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत की जन्म स्थली रहा है।
- यह शीतलाखेत के पास स्थित है।
सोमेश्वर मन्दिर समूह
- इस मंदिर समूह का निर्माण सोमचंद द्वारा कराया गया था।
- इस स्थान पर की गई पूजा काशी विश्वनाथ में की गई पूजा के समान मानी जाती है।
- सोमेश्वर कोसी नदी के किनारे स्थित है।
- सोमेश्वर मंदिर से बाजबहादुर चंद का ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है।
- यहां एक दुग्ध कुंड भी स्थित है।
- सोमेश्वर को बौरारो घाटी भी कहा जाता है।
- दक्षिणी कैलाश / बिन्देश्वर महादेव / ऐडीची धाम
- यह मजखाली और मनाल सोमेश्वर के मध्य स्थित है।
- यहां ऐड़ी देव का प्राचीन मन्दिर स्थित है।
- सैम व गोरिया के समान उत्तराखण्ड के दोनों मण्डलों में ऐड़ी एक बहुपूजित लोकदेवता हैं।
- ऐड़ी को एक पशुचारक वर्ग का देवता माना जाता है।
- क्षेत्रपाल मन्दिर –अल्मोड़ा
- दुण्डेश्वर मन्दिर –अल्मोड़ा
उत्तर वृन्दावन
- यह शिव मन्दिर है। इसकी स्थापना ज्ञानेन्द्र नाथ चक्रवर्ती तथा यशोदा माई ने की है।
झांकर सैम
- जागेश्वर से 4 किमी की दूरी पर झांकर सैम का मन्दिर स्थित है।
- झांकर सैम कालिनारा के पुत्र और हरू के छोटे भाई हैं।
- गोलू देवता की नानी का नाम कालिनारा था।
- बैसियों में हरू और सैम के फाग गाए जाते हैं।
- 22 दिन तक चलने वाले जागर को बैसी कहते हैं।
- नोट–चार दिन चलने वाली जागर को चौरास कहा जाता है।
- यह नागवंशीय शासकों का प्रतीक है।
- इसे देवदार वनों का रक्षक माना जाता है।
मानिला देवी
- यहां कत्यूरी कालीन प्राचीन भगवती मन्दिर स्थित है।
- यह मंदिर अल्मोड़ा के सल्ट क्षेत्र में स्थित है।
- यह मन्दिर 1488 में ब्रह्मदेव (बरमदेव) द्वारा स्थापित किया गया था।
तालेश्वर महादेव मन्दिर
- तालेश्वर नामक ग्राम से दो ताम्रपत्र मिले हैं।
- ये दानपत्र द्युतिवर्मन व विष्णुवर्मन के हैं।
- इन दान पत्रों में पांच पौरव राजाओं के नाम मिलते हैं।
नीलेश्वर महादेव मन्दिर
- यह मन्दिर पश्चिमी रामगंगा और गगास नदी के संगम पर भिकियासैंण में स्थित है।
- भिकियासैंण भी पश्चिमी रामगंगा व गगास के संगम पर स्थित है।
- गुजडू का डांडा व गुजडूगढ़ी अल्मोड़ा में स्थित हैं।
वृद्ध केदार शिव मन्दिर
- वृद्धकेदार पश्चिमी रामगंगा व बिनौ के संगम पर स्थित है।
भूमिया मन्दिर - मासी (अल्मोड़ा)
- भूमिया मन्दिर पश्चिमी रामगंगा के तट पर गेवाड़ घाटी में स्थित है।
- यहां सोमनाथ मेला लगता है।
नैथनागढ़ी एवं नैथना माई का मन्दिर– मासी, अल्मोड़ा
- इसका निर्माण गोरखा काल में हुआ और यहां गोरखों की सेना रहा करती थी।
- यहां नैथड़ा का किला भी है।
वैराटनगर
- चौखुटिया में वैराटनगर स्थित है।
- वैराटनगर के सामने अग्नेरी देवी का मन्दिर स्थित है।
- वैराटनगर को धामदेव के पुत्र मालूशाही तथा राजुला की प्रेमगाथा के लिए जाना जाता है।
- वैराटनगर में वैराठेश्वर मन्दिर स्थित है, जिसे राजुला मालूशाही के काल से जोड़ा जाता है।
- वैराठेश्वर मन्दिर में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी की समाधि स्थित है।
अग्नेरी देवी
यह मंदिर चौखुटिया- जौरासी मार्ग पर स्थित है।
द्वाराहाट
- द्वाराहाट को उत्तर की द्वारिका, मन्दिरों की नगरी हिमालय की द्वारिका, मीठी मूलियों की नगरी कहते हैं।
- इसे मध्यकाल में दौरा कहा जाता था।
- डा ताराचंद त्रिपाठी इस नगर की पहचान प्राचीन हाट वमनपुरी या ब्रहापुर के रूप में करते हैं।
- इसे कुमाऊँ का खुजराहों कहा जाता है।
- द्वाराहाट में कत्यूरी राजाओं की पाली पछाऊँ शाखा शासन करती थी।
- कत्यूरी राजाओं ने यहां 11 वी शताब्दी में 30 मंदिरों व 365 बावड़ियों का निर्माण कराया था।
- द्वाराहाट में मन्दिरों के समूह देखने को मिलते हैं। जिनमें महामृत्युंजय मन्दिर समूह, बद्रीनाथ मन्दिर समूह, मनियाल मन्दिर समूह, रतनदेव मन्दिर समूह कचहरी मन्दिर समूह गुर्जरदेव मन्दिर समूह प्रमुख हैं। सभी नागर शैली में निर्मित हैं।
- मनियाल मन्दिर समूह 7 मंदिरों का समूह है, इसमें जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं।
- कचहरी मंदिर समूह 12 मंदिरों का समूह है।
- ध्वज मंदिर (गूजर देव मन्दिर) कत्यूरी काल की वास्तुकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है। जो यहां का सबसे प्रसिद्ध व सबसे बड़ा मन्दिर है।
- गुजरदेव मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है।
- द्वाराहाट का मृत्युंजय मन्दिर नागर शैली में निर्मित है।
- यहां के बद्रीनाथ मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निमार्ण कत्यूरी माण्डलिक राजा सुधांगदेव ने 123 में कराया था।
शीतला देवी मन्दिर
- यह मन्दिर स्याल्दे, द्वाराहाट में स्थित है।
- स्थानीय भाषा में इसे स्याल्दे पोखर कहा जाता है।
- वैशाखी संक्रान्ति के दूसरे दिन स्याल्दे बिखौती के नाम से यहां मेला लगता है।
- कोटकांगड़ा देवी - द्वाराहाट
- यह चौधरयों की कुल देवी के रूप में प्रसिद्ध हैं।
अल्मोड़ा में स्थित नौले(Wells located in Almora)
- अल्मोड़ा जनपद में स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
- स्यूनराकोट के नौले को जुलाई, 2022 में राष्ट्रीय महत्व का धरोहर घोषित किया गया है।
- यह नौला पन्ढयूड़ा में है।
- धारा नौला- अल्मोड़ा
- चिलिया नौला- अल्मोड़ा
- उदय नौला- अल्मोड़ा
- सती नौला - अल्मोड़ा
- गैरा नौला- अल्मोड़ा
- कटकू नौला- पिथौरागढ़
- जहांन्वी नौला- गंगोली हाट, पिथौरागढ़
- रानी का नौला- चम्पावत
- एक हथिया नौला– चम्पावत